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Rekha Monica

  • लैटिन अमेरिकी स्टूडियो में हालात ऐसे हैं कि अगर आप वहां काम करते हैं, तो आपको ऐसा महसूस नहीं होना चाहिए जैसे आप बस एक और संख्या हैं। आम्बर स्टूडियो के जनरल मैनेजर, जॉर्ज सुआरेज़ बासानेज़ का कहना है कि अगर नियोक्ता थोड़ी सी मेहनत करें, तो वे अपने कर्मचारियों को बेहतर महसूस करा सकते हैं।

    लेकिन सच यह है कि यह सब सुनने में अच्छा लगता है। क्या वाकई कोई इस पर ध्यान दे रहा है? लोग काम करते हैं, वेतन लेते हैं, और फिर बस चलते रहते हैं। क्या वाकई में वेलबीइंग इतना महत्वपूर्ण है? शायद, लेकिन कितने लोग इस पर ध्यान दे रहे हैं?

    काम का माहौल अक्सर नीरस होता है। हमें बस यह पता होता है कि अगले हफ्ते हमें फिर से वही काम करना है। नियोक्ता को चाहिए कि वे कुछ नया करें, ताकि लोग खुद को सिर्फ पे-रोल पर एक और संख्या की तरह न समझें। लेकिन क्या यह सब संभव है? शायद, अगर नियोक्ता चाहें तो।

    इस सब में कोई ताजगी नहीं है। बस एक और दिन, एक और काम, और इसी तरह चलते रहना। क्या किसी को वाकई फर्क पड़ता है अगर हम खुश हैं या नहीं? शायद नहीं। शायद यही हमारी किस्मत है।

    तो, लैटिन अमेरिकी स्टूडियो के लिए, थोड़ा और ध्यान देने की जरूरत है। लोगों को महसूस कराना होगा कि वे एक संख्या नहीं हैं। वर्कप्लेस में वेलबीइंग का इतना महत्व है, लेकिन इसे कैसे लागू किया जाए? ये सब बातें सुनने में अच्छे लगते हैं, लेकिन क्या इनमें कोई असली बदलाव आएगा?

    संक्षेप में, बस इतना कह सकता हूं कि कुछ बदलाव की जरूरत है। लेकिन क्या ये बदलाव आने वाले हैं? यह सवाल हमेशा बना रहेगा।

    #लैटिनअमेरिका #वर्कप्लेस #वेलबीइंग #स्टूडियो #कर्मचारी
    लैटिन अमेरिकी स्टूडियो में हालात ऐसे हैं कि अगर आप वहां काम करते हैं, तो आपको ऐसा महसूस नहीं होना चाहिए जैसे आप बस एक और संख्या हैं। आम्बर स्टूडियो के जनरल मैनेजर, जॉर्ज सुआरेज़ बासानेज़ का कहना है कि अगर नियोक्ता थोड़ी सी मेहनत करें, तो वे अपने कर्मचारियों को बेहतर महसूस करा सकते हैं। लेकिन सच यह है कि यह सब सुनने में अच्छा लगता है। क्या वाकई कोई इस पर ध्यान दे रहा है? लोग काम करते हैं, वेतन लेते हैं, और फिर बस चलते रहते हैं। क्या वाकई में वेलबीइंग इतना महत्वपूर्ण है? शायद, लेकिन कितने लोग इस पर ध्यान दे रहे हैं? काम का माहौल अक्सर नीरस होता है। हमें बस यह पता होता है कि अगले हफ्ते हमें फिर से वही काम करना है। नियोक्ता को चाहिए कि वे कुछ नया करें, ताकि लोग खुद को सिर्फ पे-रोल पर एक और संख्या की तरह न समझें। लेकिन क्या यह सब संभव है? शायद, अगर नियोक्ता चाहें तो। इस सब में कोई ताजगी नहीं है। बस एक और दिन, एक और काम, और इसी तरह चलते रहना। क्या किसी को वाकई फर्क पड़ता है अगर हम खुश हैं या नहीं? शायद नहीं। शायद यही हमारी किस्मत है। तो, लैटिन अमेरिकी स्टूडियो के लिए, थोड़ा और ध्यान देने की जरूरत है। लोगों को महसूस कराना होगा कि वे एक संख्या नहीं हैं। वर्कप्लेस में वेलबीइंग का इतना महत्व है, लेकिन इसे कैसे लागू किया जाए? ये सब बातें सुनने में अच्छे लगते हैं, लेकिन क्या इनमें कोई असली बदलाव आएगा? संक्षेप में, बस इतना कह सकता हूं कि कुछ बदलाव की जरूरत है। लेकिन क्या ये बदलाव आने वाले हैं? यह सवाल हमेशा बना रहेगा। #लैटिनअमेरिका #वर्कप्लेस #वेलबीइंग #स्टूडियो #कर्मचारी
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